सप्लायर

"बेटा !उतार कंधे से बन्दुक फेंक ये गन्दी यूनिफार्म "
"क्यों पगलाय रहे बाबू?ये बन्दुक यूनिफार्म ही तो हमारे जीवन के सहारे ?
"बेटा तेरा बुढहा बाप ,सिर्फ घास ही नही खोदता ,उसने तेरे लिए सुख के सभी साधन जुटा दिए ,भरपूर रिश्वत दे अब इस जीवन से मुक्ति पा ही ले "
"बाबू इस समय ! जब अपने ही शहर में ,आतंकवादी "
"ओह,उन बदजातो को मेरे सप्लाय किये हथियारों के इस्तेमाल को मेरा ही शहर मिला .मेरा ही बेटा "
क्षण मात्र में सैनिक के बदूक ने एक गोलों उगली और एक शॉ ढेर था ,जी हाँ !आतंकवादियों के हथियार सप्लायर का .
अरविन्द दीक्षित