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प्रेम दोहे
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मिलते हैं हम रोज ही, होती है ना बात।
ख्वाहिश में दिन है ढले, कटती है ना रात॥
इश्क बड़ा बेदर्द है, ये जहरीला रोग।
फिर ना जानें क्यों सदा, पीछे पड़ते लोग॥
इश्क बसंती छाँव है, मस्त हवा पुरजोर।
कितना भी छुपकर करो, मच जाता है शोर॥
मन के अंदर ही रखो, दिल की बातें यार।
जो दुनिया सुन ले अगर, इश्क हुआ बेकार॥
दिल को बस प्यारा लगे, मधुर प्रेम के गीत।
कड़वा को कड़वा मिले, ये दुनिया की रीत॥
मन आनंदित कर चली, जाते जाते प्रीत।
पर दुविधा इस बात की, हार हुई या जीत॥
प्रेम सदा सुख की झड़ी, ये तो मीठा रोग।
फिर जाने क्यों बेवफा, हो जाते हैं लोग॥
कर बैठा क्यूँ प्यार मैं, क्यूँ की आँखें चार।
रिश्ते नाते भूलकर, याद करूँ बस यार॥
पागल सा मैं हो गया, बिछुड़े बस दिन चार।
कैसे होकर के जुदा, जी लेते हो यार॥
कैसे कैसे लोग हैं, कैसा कैसा प्यार।
कोई पैसों पे बिका, कहीं बिकाता प्यार॥
आओ मिलकर सब करें, सीरत का गुणगान।
प्रेम मुहब्बत को तभी, मिल पाये सम्मान॥
शम्भू साधारण