'अमिट दाग "

"यार !मेरे गहनों का बाक्स ..?"

:"आपके गहनों का बाक्स आपकी बिटिया ,कल ही तो ले गयी "

"हाँ ,दूर कालोनी में .मेरा घर होने से .सुरक्षा के कारण ,अपने मूल्यवान सामग्री आपके पास ही रखता रहा हूँ ,बिटिया के ब्याह में ,मेहमानों के आगमन के कारण ,गहनों का बाक्स ,उन्हें दिखाने ले जाता और फिर रख भी जाता लेकिन कल आपके दिए बाक्स में एक महँगी चेन नही ,,,"

"ऐसा कैसे हो सकता है ?आओ कई बार बिन गिने ही रुपये भी रख चुके और मेने भी हर बार जैसे के तैसे लोटाये भी ,फिर इस बार .."


"देखिये ! बनिये मत ,सीधे से चेन लोटा दीजिये ,मै कई पंडितो जानकारों से खोज भी कर चुका सभी से मुझे आपके नाम के संकेत मिले है "

"मेरे नाम के !मेरे भोले मित्र .तुम इन पोंगा पंडितो के चक्कर में ,हामारी वर्षो की दोस्ती विश्वास पर दाग लगा रहे .आप के रकमों के प्रदर्शन में आपका कोई ईष्यालु रिश्तेदार तो नही ?"

"अब आप अपना दाग छुपाने मेरे भले रिश्तेदारों पर दाग लगा रहे "

सत्य तो अप्रगट ही रहा प्रगट था वर्षो पुरानी दोस्ती ,विश्वास का खून ,भले रिश्तेदारों मेसे किसी एक के मुख पर मुसकान और दुसरे चेहरे पर थे अमिट दाग .

अरविन्द दीक्षित