हम हरदम सुनते आए हैं : अंकिता सिंह

हम हरदम सुनते आए हैं
प्यार हमें मज़बूती देता
पर हमने महसूस किया ये
इससे हम कमज़ोर हुए हैं !

प्यार रहा है जितना गहरा
उतना गहरा दर्द रिसा है
उन आँखों में अक्सर आँसूँ
जिनमें प्रियतम आन बसा है
हम कैसे बच पाते इससे,हम कोई अपवाद नहीं हैं
सीली सीली रातें भी हम,सीली सीली भोर हुए हैं !

उसकी मुस्कानों की चिंता
उसके ग़म का भी तो ग़म है
रूठ गया वो कभी अगर तो
मन पर भारी हर मौसम है
इतनी सारी उलझन में अब ,हम भी उलझ गए लगते हैं
अब तब में ही टूटेगी जो,ऐसी कच्ची डोर हुए हैं !

उसका आना होता फागुन
उसका जाना भादो होता
कजरारी गीली कोरों से
सागर भी पड़ जाता छोटा
क्या बतलायें इस दूरी ने,कैसा अपना हाल बनाया
हो भी और नहीं भी हो जो,दूर क्षितिज का छोर हुए हैं !

©अंकिता सिंह