प्रेम एक मीठा रोग


प्रेम सदा सुख की कड़ी, ये तो मीठा रोग।
जाने फिर क्यों बेवफा, हो जाते हैं लोग॥

कर बैठा क्यूँ प्यार मैं, क्यूँ की आँखें चार।
रिश्ते नाते भुल गया, यादों में बस यार॥

पागल सा मैं हो गया, बिछुड़े बस दिन चार।
कैसे होकर के जुदा, जी लेते हो यार॥

कैसे कैसे लोग हैं, कैसा कैसा प्यार।
कोई पैसों पे बिका, किसी ने लुटा यार॥

प्यार बसंती छाँव है, मस्त हवा पुरजोर।
कितना की छुप कर करो, मच जाता है शोर॥

 -: शंभू साधारण