कोशिश की लाख छुपाने की, लेकिन हम भी जान गए
देखा जब अधरों का कंपन, धड़कन को पहचान गए।
मेरी नज़रें ठहरीं उन पर, मानो कोई मूरत हो
साँचे में जिस्म तराशा है, कारीगर को मान गए।
फिसली उनकी हर बार नज़र, दिल ने था मजबूर किया
फिसलन कैसे पार करें, इक जादू सा था मान गए।
मैं तो उड़ता ही रहता हूँ, हरदम बनकर खाक यहाँ
लेकिन तूने ही पहचाना, बाकी बन अनजान गए।
बात छिड़ी जब सपनों की, तो कह लेने दो आज मुझे
टूटे मेरे सारे सपने दिल के सब अरमान गए।
कौन उड़ाता परचम झूठे वादों का हर ओर ‘अमर’
दो इक दिन की बात बची, सब तेरा सच अब जान गए।
Writer Amar Pankaj Jha
देखा जब अधरों का कंपन, धड़कन को पहचान गए।
मेरी नज़रें ठहरीं उन पर, मानो कोई मूरत हो
साँचे में जिस्म तराशा है, कारीगर को मान गए।
फिसली उनकी हर बार नज़र, दिल ने था मजबूर किया
फिसलन कैसे पार करें, इक जादू सा था मान गए।
मैं तो उड़ता ही रहता हूँ, हरदम बनकर खाक यहाँ
लेकिन तूने ही पहचाना, बाकी बन अनजान गए।
बात छिड़ी जब सपनों की, तो कह लेने दो आज मुझे
टूटे मेरे सारे सपने दिल के सब अरमान गए।
कौन उड़ाता परचम झूठे वादों का हर ओर ‘अमर’
दो इक दिन की बात बची, सब तेरा सच अब जान गए।